नज़र आये तू.. वो नज़र कहाँ
यूं तो हर जगह तू, मगर कहाँ !
डूबकर मुझमे, फिर उबर आये तू
दरिया-ए-उल्फत में वो लहर कहाँ !!
मौज़ूद होके मुझसे जुदा रहा वो
इबादत में मेरी....वो असर कहाँ !
मेरी आवाज़ मुझी में लौट आई
उसतक मेरी गुहार,कारगर कहाँ !
पीकर बन जाए.. फिर मीरा कोई
इबादत के प्याले ..वो ज़हर कहाँ !
तन्हा दिन,तन्हा कटती रातें मगर
परस्तिश से खाली कोई पहर कहाँ !
दरो दीवार ये छत हैं रु-बरु हमसे
कहते हैं इसे घर पर वो घर कहाँ !
मर्ज़-ए-इश्क का इलाज़ बेअसर roz
गोया दर्द बढ़ा है... मुख़्तसर कहाँ !
~s-roz~.......................
मुख़्तसर =कम /short
परस्तिश=आराधना,प्रेम
यूं तो हर जगह तू, मगर कहाँ !
डूबकर मुझमे, फिर उबर आये तू
दरिया-ए-उल्फत में वो लहर कहाँ !!
मौज़ूद होके मुझसे जुदा रहा वो
इबादत में मेरी....वो असर कहाँ !
मेरी आवाज़ मुझी में लौट आई
उसतक मेरी गुहार,कारगर कहाँ !
पीकर बन जाए.. फिर मीरा कोई
इबादत के प्याले ..वो ज़हर कहाँ !
तन्हा दिन,तन्हा कटती रातें मगर
परस्तिश से खाली कोई पहर कहाँ !
दरो दीवार ये छत हैं रु-बरु हमसे
कहते हैं इसे घर पर वो घर कहाँ !
मर्ज़-ए-इश्क का इलाज़ बेअसर roz
गोया दर्द बढ़ा है... मुख़्तसर कहाँ !
~s-roz~.......................
मुख़्तसर =कम /short
परस्तिश=आराधना,प्रेम
तन्हा दिन,तन्हा कटती रातें मगर
ReplyDeleteपरस्तिश से खाली कोई पहर कहाँ !
वाह!
आभार अनुपमा जी
Deleteबेहतरीन रचना
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