जिनगी बीत गईल, एगो इहे आस में
कब चैन के सांस आई,हमरे सांस में !
कईसे पकाईं खीर, जिनगी के आंच में
फाटल दूध खुसी के,दुःख के खटास में !
दिनवा भरवा सुरुजवा,खूब तपावे हमके
सेकिला घाव आपन चंदा के उजास में !
हमार अरजवा उनके,एकहू न सुनाला
ना रहल जोर वईसन हमरे अरदास में !
सोझा से ना,टेढ़ा अंगूरी से काम बनेला
तबेसे लागल बानी,हमहूँ इहे परयास में !
~s-roz~
बहुते बढ़िया बा।
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