अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, August 18, 2013

"दूब" हूँ मैं

घनघोर वर्षा हो या हो तपता सूरज
शीतलहरी हो या चले शुष्क आंधी
मुझे अपना अस्तित्व बनाए रखना होता है
मेरी नम्रता बचाए रखती है हमें !
अनुकूल हो या प्रतिकूल
सभी परिस्थितियों में
ढूंढ ही लेतीं हूँ
मार्ग जीवित रहने का
आह! कैसा भाग लेकर जन्मीं हूँ
कभी पैरों तले रौंदा जाना
कभी जूतों से मसले जाना
कभी देवों के सर पर सुशोभित होना
तो कभी शुभगुणों से युक्त
सुहागिन के खोइंछे में डाला जाना
कोई भी शुभकार्य मेरा बिना संभव नहीं
जहाँ नेह की वर्षा होती है, पनप जाती हूँ ,
किन्तु सिमित दायरे में ही पनपना होता है
अन्यथा निर्ममता से कोड़ दी जाती हूँ
कभी जो उपर उठने की चेष्ठा करूँ भी
तो कई धारों के हथियारों से
काट-छांट डाली जाती हूँ .....
समानांतर फैलना भाता है सभी को
किन्तु ऊपर उठना नहीं सुहाता किसी को
फिर भी कितना भी झुकाओ
पुनः उठ खड़ी हो जाती हूँ
अमरत्व का वरदान लेकर आई
"दूब" हूँ मैं .....
इस धरा पर हमारी जात से मिलती एक और जात है
"औरत" जात !!!!!!
~s-roz~
*खोइंछा=दुल्हन या सुहागिन को विदाई के समय शुभ-मंगल दायनी स्वरूप उनके आँचल में हल्दी,दूब.और चावल दिया जाता है !
 

4 comments:

  1. अमरत्व का वरदान लेकर आई
    "दूब" हूँ मैं .....
    इस धरा पर हमारी जात से मिलती एक और जात है
    "औरत" जात !!!!!!
    ***
    क्या साम्य स्थापित किया है… वाह

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    1. सादर आभार अनुपमा जी

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  2. बहुत गहन ... सटीक बात कही है ।

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  3. सादर आभार संगीता जी !

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