अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, July 31, 2013

बावरी, घुंघुरू बंधे मीरा के वो पाँव खोजती है /ग़ज़ल

प्यासी धूप, भरने को घूंट कोई ठांव खोजती है
नादां, तपते सहरा में बादल का गाँव खोजती है !

बेईमानों की बस्ती में... ईमानदारी की उम्मीद
मूरख, दरिया-ए-आग में,मोम की नाव खोजती है !

तरीके अब और भी हैं अपनों की आमद पाने को
पगली, मुंडेर पर ,कौवे की काँव-काँव खोजती है !

दरों पर दरख्त, दरख्तों पर परिंदें नहीं दीखते
भोली, कंक्रीट के वन में पेड़ की छांव खोजती है !

होके मगन नाच उठी थी,इश्क़ में घनश्याम के
बावरी, घुंघुरू बंधे मीरा के वो पाँव खोजती है !

वो दरिया-ए-मोहब्बत,जहाँ परवान चढ़ा था इश्क़
गुस्ताख़,तालिबानी फरमान में चिनाव खोजती है !

हारी हुई बाज़ी से जो बिगड़ी थी,उसे पलटने को
roz, शकुनी के चौसर में आखरी दांव खोजती है !
~s-roz~

1 comment:

  1. तरीके अब और भी हैं अपनों की आमद पाने को
    पगली, मुंडेर पर ,कौवे की काँव-काँव खोजती है !
    वाह ! लाजवाब

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