दिवस के अवसान में
घिरती घटायें घन सी
छेड़ती है तार तन की
विरह का कोई गीत गाऊँ
साँझ का दीया जलाऊँ
बुझे मन के दलान में .....!
काल के मध्याह्न में
तृष्णायें हर क्षण सताती
कामनाएं कुनमुनाती
बांचता है ज्ञान अपना
योग का मन-मनीषी
मोह के उद्यान में........ !
ह्रदय के सिवान में
प्रेम का जो धान रोपा
नेह के न बरसे बादल
नियति ने परोसे हलाहल
भाग्य बैरी सोया रहा
दुर्भाग्य के मचान में ......!
निराशा के मसान में !
चिंता चिताओं सी जल रही
जिजीविषा हाथ मल रही
अँधियारा जो छंटता नहीं
मैं बाँट जोहूँ सूर्य का
आशा के नव-बिहान में !!
~s-roz~
सिवान =खेत
घिरती घटायें घन सी
छेड़ती है तार तन की
विरह का कोई गीत गाऊँ
साँझ का दीया जलाऊँ
बुझे मन के दलान में .....!
काल के मध्याह्न में
तृष्णायें हर क्षण सताती
कामनाएं कुनमुनाती
बांचता है ज्ञान अपना
योग का मन-मनीषी
मोह के उद्यान में........ !
ह्रदय के सिवान में
प्रेम का जो धान रोपा
नेह के न बरसे बादल
नियति ने परोसे हलाहल
भाग्य बैरी सोया रहा
दुर्भाग्य के मचान में ......!
निराशा के मसान में !
चिंता चिताओं सी जल रही
जिजीविषा हाथ मल रही
अँधियारा जो छंटता नहीं
मैं बाँट जोहूँ सूर्य का
आशा के नव-बिहान में !!
~s-roz~
सिवान =खेत
अद्वितीय अभिव्यक्ति दीदी ,, बहुत सुन्दर...!!
ReplyDeleteआभार वसु !
ReplyDeleteनिसंदेह साधुवाद योग्य रचना....
ReplyDeleteसादर आभार श्री प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी !!
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