ज़िन्दगी का गुलदस्ता
धरा था वक़्त के आले में
फूल थे कई किस्म के
सजे थे कांच के प्याले में
रोशनदान की झिर्रियों से
कुछ रौशनी सी आती थी
जैसे अँधेरे के बदन पे
रौशनी की खराशें हो
बारिश के बौछारों से
पत्तियों के कोरों में
... बूंदें झिलमिलाती थीं
खुश्क गुलों के लबों पर
नमी तैर जाती थी ...
फिर भी .........तीरगी
रूह की मिटी नहीं
कोई नक़शे-पा न मिला
रेंगती रही बस तारीखें
जो रात दिन निगलती थी
बाहर अब भी ......
आफ़ताब झलकता है
छत की मुंडेरों पर
धूप पसर जाती है
चाँद के कटोरे से
चांदनी मय छलकाती है
सुबहो-शाम की परियां
गीत कोई गुनगुनाती हैं
मुद्दतों के बात अब तो
ये बात समझ आई है
ज़िन्दगी वो गुल है जो गुलदस्ते में नहीं खिलता
मन बावरा वो पंछी है जो पिंजरे में नहीं मिलता !
धरा था वक़्त के आले में
फूल थे कई किस्म के
सजे थे कांच के प्याले में
रोशनदान की झिर्रियों से
कुछ रौशनी सी आती थी
जैसे अँधेरे के बदन पे
रौशनी की खराशें हो
बारिश के बौछारों से
पत्तियों के कोरों में
... बूंदें झिलमिलाती थीं
खुश्क गुलों के लबों पर
नमी तैर जाती थी ...
फिर भी .........तीरगी
रूह की मिटी नहीं
कोई नक़शे-पा न मिला
रेंगती रही बस तारीखें
जो रात दिन निगलती थी
बाहर अब भी ......
आफ़ताब झलकता है
छत की मुंडेरों पर
धूप पसर जाती है
चाँद के कटोरे से
चांदनी मय छलकाती है
सुबहो-शाम की परियां
गीत कोई गुनगुनाती हैं
मुद्दतों के बात अब तो
ये बात समझ आई है
ज़िन्दगी वो गुल है जो गुलदस्ते में नहीं खिलता
मन बावरा वो पंछी है जो पिंजरे में नहीं मिलता !
~s-roz~
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 24/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत बहुत शुक्रिया यशोदा जी ..!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteसादर आभार वीणा जी
Deleteजिंदगी खुले आसमां के नीचे ... प्रेम और दीवानेपन मिएँ डूब कर ही मिलती है ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...
सादर आभार श्री दिगंबर जी !
Deleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteसादर आभार सुषमा जी !
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