अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, July 10, 2013

"ग़ज़ल"

जली रस्सी में बल होते हैं,बल नहीं होता,
तख़्त पे बैठा हर आदमी,सबल नहीं होता !

है ताक़त बहुत, इन भूख के निवालों में,
जज़्बा फाकाकशी का, दुर्बल नहीं होता !

रास्तों में नेकी के, हैं खाइयाँ गहरी बड़ी ,
हौसला उसपे चलने का, प्रबल नहीं होता !

हर्फों,खयालों ने, खूबसूरती से गढ़ा मगर,
कागजों पर बना घर, महल नहीं होता !

रौनकें कहाँ खो गईं है ,क़दीम क़स्बों की,
बहारों में भी गुलज़ार,आजकल नहीं होता!

धमाके दर धमाके वो लाख बरपाए मगर,
इरादा बदी का कभी भी,सफल नहीं होता !

क़ातिलों के जिस्मों में भी तो,वो धडकता है
दिल इनका,मुर्दे देख,क्यों विकल नहीं होता ?

आवाम के संजीदा मस'ले बैठकों में हल होतें हैं
अफ़सोस, उनमे से एक भी, अमल नहीं होता !

यहाँ हादसे इस क़दर,मामूल हो चले हैं "roz,
किसी गमीं पर अब, चश्म सजल नहीं होता !
~s-roz~

1 comment:

  1. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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