अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, May 12, 2013

"हादसे की रिपोर्ट"

ए सी के ठन्डे बंद कमरे में
जब उबन होने लगी
तो खिड़की के पास आकर
बाहर का नजारा देखने के लिए
पर्दा हटा दिया
क्या देखती हूँ कि
लॉन में .....
बैजंती के कुछ खिले और अधखिले फूल
और कुछ कलियाँ
जो सुबह डाल पर इठला रही थी
...
अभी सूरज की तल्ख़ धूप
और धुत हवसपरस्त लू ने
उन्हें बे आबरू कर जलती जमीन पर
लाशों की मानिंद गिरा दिया है
हवा किसी गीदड़ सी उन लाशों को
पंजे मार कर सूंघ रही है .........!
मैं झट सहम कर
खिड़की को परदे से ढक देतीं हूँ
और ज़ेहन से यही आवाज आती है
"थैंक गॉड" उनमे मैं नहीं
मेरा अपना कोई नहीं था !
कुछ ही देर में .....
ए सी की ठंडक ने
बाहर के जलते हादसे को भुला दिया है
और मैं हाथ में रिमोट लेकर
टी वी के हर न्यूज़ चेनल पर
हादसे की रिपोर्ट देख रही हूँ !
~S-roz~

2 comments:

  1. आज सच ही मन में नहीं बची संवेदनशीलता

    ReplyDelete
  2. आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार संगीता जी !

    ReplyDelete