कहते हैं ..............,
सपने तो सपने ही होते हैं
क्या पता ,पूरे हो न हों
पर मेरा एक सपना है
जो सच और शीशे की तरह साफ़ है
और वो है तुम्हारा
हर सुबह चाय की प्याली ख़त्म करने के बाद
और रात को सोने से पहले
अपने झुर्रियों वाले हाथ का
मेरे झुर्रियों वाले हाथ पर धरना
और ऐसा करते तुम्हारी नजरें
मेरी नजरों पर नहीं ,हाथों पर होती हैं
जैसे उस हाथ के स्पर्श से कुछ महसूस करना चाहते हो
या कुछ कहना चाहते हो पर कह नहीं पाते
या वो साथ देना चाहते हो
जो वाजिब वक़्त न देकर बेजां किया
अक्सर ,वो आधी रात तक बैठक से ठहाकों का उठना
और मेरा बिस्तर पर खिड़की से आती चांदनी में घुलते रहना
मेरी नींद भी तो तुम्हारी सगी थी
मुझे छोड़ तुम्हारी महफ़िल में कहकहे लगाती
और रात के तीसरे पहर कभी भूले से नींद भी आ जाती
तब तुम्हारा प्यार से उठाकर कहना
यार.जरा दोस्तों के लिए कॉफ़ी बना दो
और उनके सामने छाती चौड़ी कर
उन्हें कॉफ़ी पिलवाना !!
ऊपर वाले की फज़ल से तुम्हारी नौकरी भी एसी कि
आधे से ज्यादा वक़्त बाहर ही रहते !
माँ बनने की पहली ख़ुशी
तुम्हारे संग साझा करना चाहती थी
अफ़सोस नहीं कर पाई !
वो हमारी पहली होली
तुम्हे याद है ?
कहकर गए ,अभी सब से मिलकर आता हूँ
और जब आये तब तक खेल ख़त्म हो चूका था !
खैर ....भूलना चाहती हूँ सब कुछ
और अब तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाती हूँ तो
कुछ याद भी नहीं रहता ........
और धर देतीं हूँ अपना दूसरा हाथ तुम्हारे हाथों पर
तुम भी समझ जाते हो
और अपनी प्रेम से लबरेज़ नजरें
ऊपर कर लेते हो
शायद परिपक्व प्रेम
सिफ मौन समझता है ...
मेरा सब कुछ भूलना
लाज़मी भी है ......क्योंकि ,
तुम्हारा वो प्रेम अंगुलिमाल था
और ये प्रेम वाल्मीकि .....!!!
~s-roz~
सपने तो सपने ही होते हैं
क्या पता ,पूरे हो न हों
पर मेरा एक सपना है
जो सच और शीशे की तरह साफ़ है
और वो है तुम्हारा
हर सुबह चाय की प्याली ख़त्म करने के बाद
और रात को सोने से पहले
अपने झुर्रियों वाले हाथ का
मेरे झुर्रियों वाले हाथ पर धरना
और ऐसा करते तुम्हारी नजरें
मेरी नजरों पर नहीं ,हाथों पर होती हैं
जैसे उस हाथ के स्पर्श से कुछ महसूस करना चाहते हो
या कुछ कहना चाहते हो पर कह नहीं पाते
या वो साथ देना चाहते हो
जो वाजिब वक़्त न देकर बेजां किया
अक्सर ,वो आधी रात तक बैठक से ठहाकों का उठना
और मेरा बिस्तर पर खिड़की से आती चांदनी में घुलते रहना
मेरी नींद भी तो तुम्हारी सगी थी
मुझे छोड़ तुम्हारी महफ़िल में कहकहे लगाती
और रात के तीसरे पहर कभी भूले से नींद भी आ जाती
तब तुम्हारा प्यार से उठाकर कहना
यार.जरा दोस्तों के लिए कॉफ़ी बना दो
और उनके सामने छाती चौड़ी कर
उन्हें कॉफ़ी पिलवाना !!
ऊपर वाले की फज़ल से तुम्हारी नौकरी भी एसी कि
आधे से ज्यादा वक़्त बाहर ही रहते !
माँ बनने की पहली ख़ुशी
तुम्हारे संग साझा करना चाहती थी
अफ़सोस नहीं कर पाई !
वो हमारी पहली होली
तुम्हे याद है ?
कहकर गए ,अभी सब से मिलकर आता हूँ
और जब आये तब तक खेल ख़त्म हो चूका था !
खैर ....भूलना चाहती हूँ सब कुछ
और अब तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाती हूँ तो
कुछ याद भी नहीं रहता ........
और धर देतीं हूँ अपना दूसरा हाथ तुम्हारे हाथों पर
तुम भी समझ जाते हो
और अपनी प्रेम से लबरेज़ नजरें
ऊपर कर लेते हो
शायद परिपक्व प्रेम
सिफ मौन समझता है ...
मेरा सब कुछ भूलना
लाज़मी भी है ......क्योंकि ,
तुम्हारा वो प्रेम अंगुलिमाल था
और ये प्रेम वाल्मीकि .....!!!
~s-roz~
सादर आभार वंदना जी !
ReplyDeleteशायद परिपक्व प्रेम र्सिफ मौन समझता है...वाह..
ReplyDeleteआभार रश्मि जी
Deleteअंगुलीमार और बाल्मिकी के प्रतीकों में कल और आज के सशक्त बिम्ब....
ReplyDeleteसादर आभार अरुण जी !
Deleteसादर आभार ब्रिजेश जी !
ReplyDelete"परिपक्व प्रेम सिर्फ मौन समझता है"
ReplyDeleteपरिपक्व रचना