जिंदगी में जो पूरा है
दरअसल वो अधूरा है !
ताउम्र जद्दोज़हद क्यूँ
ये जिस्म माटी-धूरा है !
हौसला हो बुलंद गर
वो पत्थर नहीं चूरा है !
चीन दिखता चीनी सा
असल में कन-खजूरा है !
जिसकी अपनी सोच नहीं
वो आदमी नहीं ज़मूरा है !
जिन में वो नहीं होता roz
वो गीत मेरे लिए बेसुरा है !
दरअसल वो अधूरा है !
ताउम्र जद्दोज़हद क्यूँ
ये जिस्म माटी-धूरा है !
हौसला हो बुलंद गर
वो पत्थर नहीं चूरा है !
चीन दिखता चीनी सा
असल में कन-खजूरा है !
जिसकी अपनी सोच नहीं
वो आदमी नहीं ज़मूरा है !
जिन में वो नहीं होता roz
वो गीत मेरे लिए बेसुरा है !
~s-roz~
बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
आभार प्रसन्न वदन जी !
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