अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, May 7, 2013

"चौकीदार "

इस मोहल्ले में
रात गए
गली का चौकीदार
जागते रहो ! जागते रहो !
रोज चिल्लाता है ......
घर के लोग
नीम सी नींद में सुनते हैं
और फिर तसल्ली से
करवट बदल
और गहरी नींद सो जाते हैं
... मैं समझ नहीं पाती कि
आखिर ,वो खुद तो जाग रहा होता है
फिर किसको
जागते रहने की चेतावनी देता है ?

ठीक उसी तरह
जैसे कलम का चौकीदार
जागो ,जागते रहो
लिखता रहता है ......
और पढने वाला पढ़कर
पन्ने पलटकर
तसल्ली से
रोजमर्रा के कामों में जुट जाता है
मैं समझ नहीं पाती कि,
आखिर कलम का चौकीदार
किसको जगाने के लिए लिखता है ?
~S-roz~

2 comments:

  1. लाजवाब रचना | बधाई

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  2. हार्दिक आभार तुषार जी !

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