घर में बरक़त, सुख-शांति में काफी बढ़ोतरी हुई । उसके रूप व गुण के मुताबिक़ योग्य लड़के से उसका धूम-धाम से विवाह संपन्न हुआ जो शहर में सरकारी चपरासी था ।
ससुराल में पहला डेग डालते ही नाउन ने दुल्हन का चेहरा देख ख़ुशी से इतराते हुये एलान किया "अरे दुल्हिन तो इन्नर परी है खूब सुन्दर" । पूरे गाँव में उसके रूप व गुण का बखान होने लगा । अब जो भी दुल्हन गाँव में उतरती उसकी तुलना तेतरी से होती । किन्तु तेतरी अपने झांपी-झोरा के साथ अपना सुभाग लाना भूल गयी थी शायद ।
कुछ दिन बड़े सुन्दर व चैन के बीते उसके बाद उसके पति को शहर अपनी नौकरी पर लौटना पड़ा ।
जाते-जाते कह गया कि 'अबकी बार छुट्टी पर आऊंगा तो तुम्हे साथ ले चलूँगा" । इसी सपने की आस लिए वह विधुर ससुर, जेठ और जेठानी की सेवा में जुट गई । दिन कैसे बीत जाता पता ही नहीं चलता ।
अब उसके गर्भ में प्रेम का अंकुर पनपने लगा था, उसके सपने और सुनहले होने लेगे थे । शहर से तेतरी के नाम जो मनीआर्डर व पाती आती ससुर व जेठ दुआर पर ही छेंक लेते कभी वो तेतरी के हाथ नहीं आ पाता ।
दिनभर की मेहनत और पौष्टिक आहार की कमी से पेट में पनपता अंकुर सूख गया । इस दू:ख़ से उबर पाती तब तक एक पाती उसके हाथ पकड़ाया गया जिसकी लिखावट ने तेतरी के माथे पर दक-दक करते सिन्दूर को पोंछ डाला। सिन्दूर भरा सिन्होरा (सिंदूरदान)आले पर धर दिया गया कभी न खुल पाने के लिए ।
घर के हालात अब पहले जैसे नहीं रहे पति का पेंशन पोस्टमास्टर कुछ पैसे के लालच में जेठ या ससुर को धरा देता । सारे दिन बदन तोड़ मेहनत से थकी हारी और जेठ, ससुर की भेदती निगाहों से बचती-बचाती जब रात को सोने जाती तो भी मंडराती परछाइयाँ रातों की नींद उड़ा देती । हर वक़्त डरी सहमी सी रहने लगी थी वो ।
सर्वगुण संपन्न सुभागी दुल्हिन अब अपशकुनी, करझौंसी ,कोख उजाड़न,पेट न भरा तो भतार खा गई जैसे जुमलों से नवाज़ी जाने लगी । जेठानी के पूरे दिन चल रहे थे तेतरी को उसके सामने भी जाने की मनाही थी ।
एक दिन पट्टीदारी में किसी की शादी थी, घर के सभी जन तिलक समारोह में दुसरे दुआर गए हुए थे । तेतरी बड़ी खुश थी कि आज कोई काम नहीं चैन की नींद सोएगी । यही सोच वो जैसे ही कोठरी का दरवाज़ा बंद करने लगी तभी पीछे से किसी ने उसका मुंह दबा दिया ,तेतरी इसके लिए तैयार न थी अतः उससे छुड़ाने की कोशिश में उसके हाथ में आले पर धरा सिन्होरा आ गया उसने उसे ही उसके सर पर दे मारा ,हडबड़ा कर उसने उसको छोड़ दिया तेतरी घबरा कर जोर-जोर से चिल्लाने लगी आवाज़ सुनकर घर के व सारे रिश्तेदार दौड़े आये ,वहां का नज़ारा देख सब स्तब्ध रह गए । जमीन पर चारो तरफ सिन्दूर बिखरा पड़ा था ,तेतरी एक तरफ थर-थर काँप रही थी और दुसरे तरफ जेठ के माथे से खून बह रहा था । लोगों की भीड़ देख जेठ पैंतरा बदलते हुए गुस्से में कहने लगा,
"अरे ये पक्की डायन है देखिये आपलोग सिन्दूर से ओझा-गुनी कर रही थी ।अपना कोख़ तो भक्ष गई अब मेरी पत्नी का कोख़ उजाड़ने का प्रयास कर रही है " अच्छा हुआ आप लोग आ गए वरना ये मुझे भी मार डालती "। इतना सुनने भर की देर थी कि, सभी लोग तेतरी को मारने और भागने पर तुल गए ।
तेतरी अब डायन बन चुकी है । अब गाँव के छोर पर मुसहर टोली के दक्खिन ओर जो बगिया है आजकाल वहां एक कुटिया दिखती है जहाँ रोज़ मुहं अँधेरे दुआर पर सिन्दूर टीका हुआ दिख जाता है । लोगों का उस तरफ से आना-जाना बंद हैं । खास कर बच्चों को वहां जाने की सख्त मनाही है ।
'डायन घर' नाम पड़ा है उस कुटिया का । कोई कहता है वो लोगों का खून पीती है ,कोई कहता है वो उलटे पैर चलती है ।
मगर इन सब से बेख़बर तेतरी बहुत खुश है डायन बनकर , अब उसे दिन को आराम और रात को चैन की नींद आती है । पोस्टमास्टर भी टोना टोटका के भय से अब पेंसन "डाइन घर" दे आता है ।
सिन्होरा हाथ में लिए तेतरी कहती है "ये सिंदूर मांग में रहकर रक्षा नहीं कर पाई तो क्या दुआर पर रहकर तो रक्षा कर रही है "?
सरोज सिंह (s-roz~)