अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, January 14, 2011

"हे सीते !!!!'तुम' नारी जाति का 'अभिमान'

हे सीते !!
"साधा था तुमने 'शैशव'  में ही जिस'शिवधनुष' को

उसपर प्रत्यंचा चढाने का गौरव मिला'प्रभु राम' को

स्वयं  की शक्ति को समाहित कर बनी रही तुम!

उनके सन्मुख कोमल,स्निग्ध कंचन काया सहचरणी

सब सुख त्याग चली वन, संग उनकी अनुगामिनी

तुम थी उनकी 'ह्रदयदेवी' वो तुम्हारे 'प्रणयसेवी'

फिर दोनों के संप्रभुता में इतना अंतर क्यों हुआ ?

 प्रभु ने स्पर्श किया  तो 'अहिल्या त्राण' हुआ ,

फिर  तुम छू  गई तो क्यूँ 'अग्नि स्नान' हुआ ?

तुम्हारा  संयम फिर भी ना कम हुआ

अंतर की पीड़ा से भले ही आँख नम हुआ

प्रभु, थे मर्यादा पुरुषोत्तम  अपने राज्य के लिए

पर 'तुमको  को विवश किया'वनगमन' के लिए 

हे सीते! तुम फिर भी ना अविचल हुई ....

बनकर स्वालंबी जाया  तुमने 'लव और कुश '......

पाला व सबल बनाया  उन्हें बन कर्मयोगिनी

प्रभु वन आये जब साथ ले चलने अपने 'राज'

नहीं स्वीकारा तुमने उनका  रानी का' ताज '

हे पृथा!तुमने फिर  भी उन्हें नहीं  धिक्कारा!

तब दिखाया तुमने, अपना नारी 'स्वाभिमान'

सौम्यता से हाथ जोड़ हो गई धरा में 'अंतर्ध्यान'

जब तक और जहाँ तक यह धरा है 'विराजमान'

सदा सदा रहोगी 'तुम' नारी जाति का  'अभिमान'

~~~S-ROZ~~~

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