आज सूरज की धूप को, सूप में फटकर
कुछ चमकीली किरणे छांट कर
कांच में पकाकर ...
चमकीले ,रंग बिरंगे कंचे बना लिए हैं
रात के गहराते ही
अपने लॉन में ,संग उनसे
तसल्ली से कंचे खेलूंगी
कित्ती मिन्नतें की थी मैंने
उस निगोड़े "चाँद" की
कि कभी तो आ जा सितारों को साथ लिए
मेरे कने ...............पूरी रात
बैठ हम तुम सितारों से कंचे खेलेंगे
पर ना जी ...............
साहेब को तो चांदनी संग ही अठखेलियाँ ही भातीं हैं
किसी दिन ज़िद पर आ गई तो
इन्ही किरणों को बुनकर अपना चाँद भी बना लुंगी
हां नहीं तो ............!
~s-roz~
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