अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, February 17, 2013

"बिन मौसम बरसात में"

कल से कल तक, तुम तो, गरज बरसकर खुल जाओगे
बिन मौसम बरसात में,जाने मेरा क्या क्या बह जायेगा !

रुपहले ख्वाब जो मेरे दामन से बह निकले कल सैलाब में
जो गया सो गया,फिर भी,उन् यादों का काफिला रह जायेगा !

दर्द देने के तुमने भी तरीके कम नहीं आजमायें हैं मुझपे
खैर,औरों की तरह ये दर्द भी शौक़ से मेरा दिल सह जायेगा !
~s-roz~

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