अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, February 26, 2013

"हम समझे थे के,वो "रब" के हैं "

हम समझे थे के,वो "रब" के हैं
धत्त! वो तो बस,मज़हब के हैं !

तोड़े से भी नहीं टूटती वो दीवार
बीच हमारे खड़ी,जाने कब से है !

देखें है हमने कई कद्दावर ऐसे
जो बौने नियत के,गज़ब के हैं !

सदनों में कूदते हैं ,कुर्सियों पर 
फ़नकार सभी बड़े क़रतब के हैं !

आईनें में खुद को पहले देखना
बस यही इल्तजा आप सब से है !!
~s-roz~

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