मन ही न हुआ बसंत तो क्या करूँ इस रुत बहार का
सुना था हमने के, होता है फल मीठा हर इंतज़ार का !
झोला पूरा भरा ही नहीं और जेबें हो जाती हैं खाली
सच में बड़ा बुरा हाल है आज के हर खरीददार का !
गिरे का चढाकर,चढ़े का गिराकर तय करते हैं कीमत
आज की चौकचौन्ध में यही दस्तूर है, हर बाज़ार का !
मालूम हमें, है फासिला बहुत ही ज़मीं का सितारों से
है अंदाजा भी आज के नौनिहालों की तेज रफ़्तार का !
मेरे पोसे चूज़ों के पर फड़फड़ाने लगे ,हैं तैयार उड़ने को
एक बार उड़ चले तो क्या,आके पूछेंगे हाल घर बार का !
'हम दो हमारे दो' से बाद बाकी रह जायेंगे फिर वही दो
होगा साथ मेरा, वही हमसफ़र मेरे आखरी दिन चार का !
~s-roz~
सुना था हमने के, होता है फल मीठा हर इंतज़ार का !
झोला पूरा भरा ही नहीं और जेबें हो जाती हैं खाली
सच में बड़ा बुरा हाल है आज के हर खरीददार का !
गिरे का चढाकर,चढ़े का गिराकर तय करते हैं कीमत
आज की चौकचौन्ध में यही दस्तूर है, हर बाज़ार का !
मालूम हमें, है फासिला बहुत ही ज़मीं का सितारों से
है अंदाजा भी आज के नौनिहालों की तेज रफ़्तार का !
मेरे पोसे चूज़ों के पर फड़फड़ाने लगे ,हैं तैयार उड़ने को
एक बार उड़ चले तो क्या,आके पूछेंगे हाल घर बार का !
'हम दो हमारे दो' से बाद बाकी रह जायेंगे फिर वही दो
होगा साथ मेरा, वही हमसफ़र मेरे आखरी दिन चार का !
~s-roz~
बहुत खूबसूरत उद्गार
ReplyDeleteआभार वंदना जी !
DeleteRead your comments and that got me to visit your Facebook profile and that further led me here.
ReplyDeleteYour poems are very good and I appreciate your work. Please keep writing such good ones.
By the way I am a writer by profession and have more than 15 books published under my name. I am from Barmer (Raj) and my Facebook id is Rahul Neel.
with warm wishes
Rahul Khatri