अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, July 13, 2011

या रब! तेरी! इश्क की दुनिया

या रब! 
या रब! तेरी !!
इश्क की दुनिया
जितनी दिखती है
उतनी आसां है नहीं
इसकी बसती है बसी
बेहद ऊँचे कहीं ...
बसना वहां,हर किसी के
बस की बात नहीं
उसकी चाह में ए यार
हम वहां तक पहुचे
पता ही ना चला हमें
हम कहाँ तक पहुचे .
~~~S-ROZ~~~

6 comments:

  1. हम इंसान की आदत है खुद की
    इश्क तो बस इबादत है रब की

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  2. यह इश्क नहीं आसान .

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  3. प्रेम अपने आप में किसी साधना से कम नहीं ....

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  4. हम वह तक पहुचे ... पता ही न चला हमें हम कहा तक पहुचे ......... वह सरोज जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .....

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  5. बहुत सुंदर रचना.. बधाई स्वीकार करें.

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  6. प्रिय मित्रों !!आप सभी की उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है आभार!!

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