या रब!
या रब! तेरी !!
इश्क की दुनिया
जितनी दिखती है
उतनी आसां है नहीं
इसकी बसती है बसी
बेहद ऊँचे कहीं ...
बसना वहां,हर किसी के
बस की बात नहीं
उसकी चाह में ए यार
हम वहां तक पहुचे
पता ही ना चला हमें
हम कहाँ तक पहुचे .
~~~S-ROZ~~~
इश्क की दुनिया
जितनी दिखती है
उतनी आसां है नहीं
इसकी बसती है बसी
बेहद ऊँचे कहीं ...
बसना वहां,हर किसी के
बस की बात नहीं
उसकी चाह में ए यार
हम वहां तक पहुचे
पता ही ना चला हमें
हम कहाँ तक पहुचे .
~~~S-ROZ~~~
हम इंसान की आदत है खुद की
ReplyDeleteइश्क तो बस इबादत है रब की
यह इश्क नहीं आसान .
ReplyDeleteप्रेम अपने आप में किसी साधना से कम नहीं ....
ReplyDeleteहम वह तक पहुचे ... पता ही न चला हमें हम कहा तक पहुचे ......... वह सरोज जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.. बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteप्रिय मित्रों !!आप सभी की उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है आभार!!
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