अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, July 8, 2011

"संबंधों का व्याकरण "

"मैं और तुम"
इन "सर्वनामों" के मध्य
व्याप्त है हमारे अपने "विशेषण"
जिन्हें हम बदलना नहीं चाहते
और ढूंढ़ते रहते हैं
जीवन की उपयुक्त "संज्ञा" !!!!
~~~S-ROZ~~~

3 comments:

  1. अपनी अपनी क्रिया के माध्यम से?

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  2. शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना.....

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  3. Mitron ap sabhi ka hriday se atyant abhar!

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