अधूरे ख्वाब
"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "
डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Tuesday, May 31, 2011
"यादों के जख्म "
सुनो
!
तुम्हारे खयालो में गुम
आज,गरम पतीले से
ऊँगली जल गई
फफोला निकल आया है
उसे मसलकर नमक लगा दूँ
क
म स कम
...
आज !
तुम्हारी यादों के जख्म
दर्द
तो
ना
देंगे
......!!
~~S-ROZ~~~
2 comments:
36solutions
June 5, 2011 at 3:03 AM
यादों के जख़्मों को सुन्दर शव्द दिया है आपने सरोज जी.
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Anonymous
June 8, 2011 at 1:53 AM
मार्मिक प्रस्तुति
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यादों के जख़्मों को सुन्दर शव्द दिया है आपने सरोज जी.
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति
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