प्रभु ! मै तुम्हे दूर से प्रणाम करती हूँ
क्यूँ, पास आकर तुम्हारा हाथ नहीं थामती?
पिता समान तुम्हारे चरण स्पर्श करती हूँ
क्यूँ, मित्र स्वरुप गले नहीं लगा पाती
पता है मुझे तुमसे, मिलन का मार्ग
क्यूँ, उस मार्ग पर चलने का साहस नहीं जुटा पाती
भक्ति से नैवेद्य,पुष्प अर्पण करती हूँ
क्यूँ, मीत समझ प्रीत नहीं कर पाती
जीवन पथ पर चलते चलते थक जाती हूँ
क्यूँ, तब अनंत विश्राम को तुम्हारे पास आने से डरती हूँ !
प्रभु! तुमसे ये कैसा प्रेम ,कैसी भक्ति है?
~~~S-ROZ ~~~
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
शव्दों में भावों का सटीक चित्रण कर कविताओं को बेहद संवेदनात्मक बनाया है आपने सरोज जी. इस ब्लॉग को फालो कर रहा हूं अब नये पोस्टों को फीड रीडर से पढ़ता रहूंगा.
ReplyDeleteसंजीव जी /संजय जी आप के समय एवं उत्साहवर्धन का आभार जिस विश्लेषण के साथ आप ने प्रतिक्रिया दी वो सराहनीय है आप सभी का स्नेह बना रहे ...सादर !!
ReplyDelete