डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Saturday, May 21, 2011
तुम जो हस दो एकबार .......
"दरकिनार कर चेहरे की उदास परतों को तुम जो हस दो एकबार मेरे लफ़्ज जाग उठे नज़्म भी साँस लेने लगे धड़क उठे ग़ज़लों के दिल सफ़्हा दर सफ़्हा किरदार जी उठे हर्फ़ों को मानी मिल जाये तुम जो हस दो एकबार ....... ~~~S-ROZ ~~~
बहुत ही खूबसूरत रचना, आपकी लेखनी बहुत कम लफ्जों में बहुत बड़ी बात कह जाती है|
ReplyDeleteaapka bahut bahut shukriya SANJAY ji ....
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