ठौर ठिकाना तिनकों का
प्यार का आशियाँ बनाने को
कुछ तिनके तुम ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने ,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है ,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....
जिसमे नेह की निवाड़ होगी
प्रेम की किवाड़ होगी
होगी विश्वास की इक खिड़की
और होगी मीठी तकरार की झिडकी
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....
घर में उजाला करने को
सूरज की रेज़े ले आउंगी
चंदा की चिरौरी करके तुम
चांदनी को घर ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना
घर को और सजाने को
अरमानो के झालर लटकाऊंगी
आँगन की तारीकी मिटाने को
तुम बन से जुगनू ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....
~~~S -ROZ ~~~
बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है इन कविताओं में सरोज जी.
ReplyDeleteनेह की निवाड, प्रेम की किवाड़, विश्वास की खिड़की, तकरार की झिड़की, घर को फिर से सजाने को .......तुम बन से जुगुनू ले आना - अनूठे बिम्ब - अति सुंदर - हार्दिक बधाई
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteकल 23/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
bhaut hi khubsurat khwab sajaya hai aapne...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
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