अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, November 12, 2013

"तुम तो आकाश हो"


नेह के नीले एकांत में 
क्षितिज की सुनहरी पगडंडी पर 
चलते हुए.....
तुम्हारे होने या ना होने को 
सूर्यास्त से सूर्योदय के बीच 
कभी विभक्त नहीं कर पायी मैं !

जाने कब से 
धरती पर चलती आ रही मैं 
इस ज्ञान से परे, कि
तुम अपनी छ्त्रछाया में 
संरक्षित करते आये हो मुझे !

अपनी थाली में परोसते रहे 
मन भर अपनापन 
ना होते हुए भी तुम्हारे होने का 
आभास् होता रहा मुझे !

ऋतुएँ संबंधों पर भी 
अपना असर दिखाती है शायद 
चटकती बिजली ने 
तुम्हारे सिवन को उधेड़ते हुए 
जो दरार डाली है 
तुम्हारी श्वेत दृष्टि अब श्यामल हो उठी है !

या तुम बहुत पास हो 
या कि बहुत दूर
पर वहां नहीं हो जहाँ मैं हूँ 
संबंधों पर ठण्ड की आमद से 
सूरज भी अधिक देर तक नहीं टिकता !

ऐसे अँधेरे से घबराकर मैं 
स्मृतियों की राख में दबी 
चिंगारियों को उँगलियों से 
अलग कर रही हूँ 
किन्तु उससे रौशनी नहीं होती 
बल्कि उंगलियाँ जलतीं है !

तुम्हे दस्तक देना चाहती हूँ 
पर तुम तो आकाश हो ना 
कोई पट-द्वार नहीं तुम्हारा 
बोलो....तो कहाँ दस्तक दूँ ?
जो तुम सुन पाओ !!! 

~s-roz~

7 comments:

  1. बहुत खूब...आकाश को कहाँ दस्तक दी जाये...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सदर आभार वाणभट्ट जी

      Delete
    2. This comment has been removed by the author.

      Delete
    3. सादर आभार वाणभट्ट जी

      Delete
  2. कोमल भावो की अभिवयक्ति......

    ReplyDelete
    Replies
    1. सदर आभार सुषमा जी

      Delete
  3. बहुत बेकरारी .....
    तुम्हे दस्तक देना चाहती हूँ
    पर तुम तो आकाश हो ना
    कोई पट-द्वार नहीं तुम्हारा
    बोलो....तो कहाँ दस्तक दूँ ?
    जो तुम सुन पाओ !!!

    ReplyDelete