अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, November 18, 2013

पता नइखे /भोजपुरी गज़ल



कहीं भगवान के पता नइखे 
कहीं इंसान के पता नइखे 

सगरो अन्हियार बढल बा 
सुरुज-बान के पता नइखे 

पोथी पढ़ पंडित बन गईले
जिए-भर ग्यान के पता नइखे 


जे उगवलस खेत में सोना 
ओकरे धन-धान के पता नइखे 

कबले होई आस के अंजोर 
ऊ बिहान के पता नइखे 

इहाँ मुर्दा बनल सब अदमी 
अब समसान के पता नइखे 

बदलत बा इंसान के फितरत 
कहीं ईमान के पता नइखे 

जेहमे कब्बो करज न उगे 
ऊ सिवान के पता नइखे 

~s-roz~

अन्हियार=अँधेरा 
ग्यान=ज्ञान
उगवलस=उगाया 
बिहान=दिन 
समसान =श्मशान 
सिवान=खेत 




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