अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, November 21, 2013

"बिवाइयां "

बचपन के जाड़ों में 
मुझे याद आता है 
जब माँ की एड़ियां 
फटने लगती ....
उनपर वो लगातीं थी 
मधु के छत्ते का मोम
और हमारी एड़ियों को 
वो जुराबों में महफूज़ कर देती !

अब जो देखती हूँ 
कंक्रीट से रूखी होती सतह 
और अज़ल से रौंदी गयी 
ज़मीं की फट रही बिवाइयों को 
तो जी करता है 
दरिया के तह से 
खुरच लाऊं .....
उर्वर माटी का मोम 
और भर दूँ उन ज़ख्मो पर 
ताकि उसके रोमकूपों से 
सांस ले सके 
नन्हे-नन्हे बिरवे !

माना के मेरा यह ख़याल 
चींटी की चीनी के दाने भर सा है 
पर यह इल्म भी है 
कि चीटियाँ...... 
अकेली नहीं चलती 
क़तारों में वो चाहे तो 
चीनी का ढेर लगा सकती है 
फिर हम अपनी माँ की 
फटी बिवाइयों को 
क्यूँ नहीं भर सकते ?

डरती हूँ उस दिन के लिए 
जब खेतों की जगह 
रह जाएगा शेष
सिर्फ रेत ही रेत 
और "पृथ्वी" ....
घायल ऊंटनी सी 
दौड़ेगी मरुथल-मरुथल 
और हम उसका पेट काट 
पी रहे होंगे जल !!!!

~s-roz~

3 comments:

  1. दीदी इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 50 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  2. शुक्रिया नीरज भाई

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