अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, February 26, 2013

"हम समझे थे के,वो "रब" के हैं "

हम समझे थे के,वो "रब" के हैं
धत्त! वो तो बस,मज़हब के हैं !

तोड़े से भी नहीं टूटती वो दीवार
बीच हमारे खड़ी,जाने कब से है !

देखें है हमने कई कद्दावर ऐसे
जो बौने नियत के,गज़ब के हैं !

सदनों में कूदते हैं ,कुर्सियों पर 
फ़नकार सभी बड़े क़रतब के हैं !

आईनें में खुद को पहले देखना
बस यही इल्तजा आप सब से है !!
~s-roz~

Thursday, February 21, 2013

"कंचे "किरणों के"

आज सूरज की धूप को, सूप में फटकर 
कुछ चमकीली किरणे छांट कर
 कांच में पकाकर ...
चमकीले ,रंग बिरंगे कंचे बना लिए हैं 
रात के गहराते ही 
अपने लॉन में ,संग उनसे 
 तसल्ली से  कंचे खेलूंगी 
कित्ती मिन्नतें की थी मैंने
उस निगोड़े "चाँद" की 
कि कभी तो आ जा सितारों को साथ लिए 
मेरे कने ...............पूरी रात 
बैठ हम तुम सितारों से कंचे  खेलेंगे 
पर ना जी ...............
साहेब को तो चांदनी संग ही अठखेलियाँ ही भातीं  हैं 
किसी दिन ज़िद  पर आ गई तो 
इन्ही किरणों को बुनकर अपना चाँद भी बना लुंगी 
हां नहीं तो ............!
~s-roz~
 
 

Wednesday, February 20, 2013

"हमसफ़र मेरे आखरी दिन चार का "

मन ही न हुआ बसंत तो क्या करूँ इस रुत बहार का
सुना था हमने के, होता है फल मीठा हर इंतज़ार का !

झोला पूरा भरा ही नहीं और जेबें हो जाती हैं खाली
सच में बड़ा बुरा हाल है आज के हर खरीददार का !

गिरे का चढाकर,चढ़े का गिराकर तय करते हैं कीमत
आज की चौकचौन्ध में यही दस्तूर है, हर बाज़ार का !

मालूम हमें, है फासिला बहुत ही ज़मीं का सितारों से
है अंदाजा भी आज के नौनिहालों की तेज रफ़्तार का !

मेरे पोसे चूज़ों के पर फड़फड़ाने लगे ,हैं तैयार उड़ने को
एक बार उड़ चले तो क्या,आके पूछेंगे हाल घर बार का !

'हम दो हमारे दो' से बाद बाकी रह जायेंगे फिर वही दो
होगा साथ मेरा, वही हमसफ़र मेरे आखरी दिन चार का !
~s-roz~

Sunday, February 17, 2013

"बिन मौसम बरसात में"

कल से कल तक, तुम तो, गरज बरसकर खुल जाओगे
बिन मौसम बरसात में,जाने मेरा क्या क्या बह जायेगा !

रुपहले ख्वाब जो मेरे दामन से बह निकले कल सैलाब में
जो गया सो गया,फिर भी,उन् यादों का काफिला रह जायेगा !

दर्द देने के तुमने भी तरीके कम नहीं आजमायें हैं मुझपे
खैर,औरों की तरह ये दर्द भी शौक़ से मेरा दिल सह जायेगा !
~s-roz~

Saturday, February 16, 2013

माघ के सवनवा (भोजपुरी गीत )

 
सखी,माघ महिनवा अमवा मउराला
देख त कईसन सवनवा बउराईल
अब हम फगुआ के फाग सुनाईं
के असो बईठ के कजरी गाईं
मारsता करेजवा में जोर हो रामा, माघ के सवनवा !

सखी,माघ महिनवा सरसों पियराला
देख त कईसन इ,घाटा घिर आईल
 अब हम आपन खेत सरियाईं
के सरसों के भिजल फर फरीयाईं
भीजsता अचरवा के कोर हो रामा, माघ के सवनवा !

सखी, माघ महिनवा के घाम सोहाला
देख त कईसन झटास भर आईल
कैसे सुरुज के हम जलवा चढाई
कैसे फूलगेंदवा के झरला से बचाईं
देहिया सिहराला पोरे पोर हो रामा, माघ के सवनवा !
~s-roz~

Friday, February 8, 2013

"इक ख्वाब संजोया है मैंने"

चिड़ियों से पूछा है मैंने ,कुछ ठौर ठिकाना तिनकों का
कुछ तिनके मैं चुन लाऊँगी,उन तिनकों को तुम बुन देना

इक ख्वाब संजोया है मैंने ,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्चा है या झूठा है ,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....!

होगी विश्वास की इक खिड़की,तकरार की मीठी सी झिड़की
किवाड़ प्रेम की मैं लगवा दूंगी,निवाड़ नेह की तुम बुन लेना

इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्चा है या झूठा है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....!

घर में उजाला करने को मैं सूरज की रेज़े ले आउंगी
चंदा की चिरौरी करके तुम,चाँदनी की उजास ले लेना

इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्चा है या झूठा है,तुम खुद ही इसे गुन लेना....!

घर को और सजाने को,अरमानो के झालर लटकाऊंगी
आँगन का अंधियारा मिटाने को,तुम बन से जुगनू ले लेना

इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्चा है या झूठा है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....!