अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, September 6, 2012

"तर्पण"


हताहत हैं सभी
कोई ना कोई अंग
जख्मी  है सभी का
मरणासन्न ,...किन्तु
अदम्य जिजीविषा
मारे डाल रही
न निकलते है प्राण
न मिलता है त्राण
मृत्यु जागृत हो रही
चहुँ  ओर  !
क्या,
अब कोई बचा नहीं  
अखंडित ?
जिसके हाथों
हो सके अर्पण .
हम सभी के  
तर्पण का !!
~S-roz ~
 
 

1 comment:

  1. जो तन बीते, वो तन जाने..
    बहुत दर्द महसूस हुआ.......

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