अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, September 9, 2012

"उनके बस्ते में"..."ग़ज़ल "

तालीम--तर्बीयत नहीं बसती उनके बस्ते में !
है तो बस भूख,गरीबी,जुर्म,ज़लालत उनके बस्ते में !!
हाथ जख्मी और मैले हो जातें हैं कचरे में उनकें !
रद्दी के साथ हैं ख्वाब भरे तितलियों के पर भी उनके बस्ते में !!
अलसुबह जो बाँटते हैं अखबार पढने को घरो में !
नहीं मिलती वर्णमाला की कोई पुस्तक उनके बस्ते में !!
ढाबों में लज़ीज़ खानों के नाम जुबानी याद है जिन्हें !
दो जून की सूखी रोटियां भी नहीं अटती उनके बस्ते में !!
गर्म जोशी से कागजों पर निपटाए जाते हैं तालीमी मस,अले:!
बाद उसके वो कागजें हो जाती हैं बिलकुल ठंडी उनके बस्ते में !!
~S-roz~
 

10 comments:

  1. सच लिखा है ... अपने समाज के इस दोष को सभी ने मिल के दूर करना होगा ... अच्छी रचना है ..

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    1. नमन एवं आभार दिगंबर जी !!

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  2. हाथ जख्मी और मैले हो जातें हैं कचरे में उनकें !
    शानदार....तजुर्बेकार कलम से निकली ग़ज़ल....
    इसे मैं ले जा रही हूँ..नई-पुरानी हलचल में मिल-बैठ कर पढ़ेंगे
    आप भी आइये न, नई-पुरानी हलचल में, इसी बुधवार को

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    1. जी जरुर यशोधरा जी हार्दिक आभार आपका !!

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  3. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  4. बहुत गहन बात कही है.....
    रचना दिल को छूती है..और उद्वेलित भी करती है...
    अनु

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  5. सोचने पर मजबूर कराती हुई रचना..बहुत खूब |

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  6. सोचने को मजबूर करती गज़ल ।

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