तुम !
शब्दों के धनी मनी
शब्द शिल्पी हो !
गढ़ लेते हो
प्रेम की अनुपम कविता !
किन्तु भावों के मेघ
मेरे मन में भी
कम नहीं घुमड़ते !
मेरा ,आतुर ,उद्दांत हृदय
कसमसाता है
शब्दों के धनी मनी
शब्द शिल्पी हो !
गढ़ लेते हो
प्रेम की अनुपम कविता !
किन्तु भावों के मेघ
मेरे मन में भी
कम नहीं घुमड़ते !
मेरा ,आतुर ,उद्दांत हृदय
कसमसाता है
छटपटाता है
प्रेम के उदगार को
किन्तु मेरे निर्धन शब्द
श्रृंगारित नहीं कर पाते
मन के अगाध भावों को
यदा कदा....
दरिद्रता झलक ही जाती है
हे शब्द शिल्पी !
क्या ही अच्छा होता
शब्दों के साथ साथ
भावों के भाव भी
तुम समझ पाते !
~s-roz ~
प्रेम के उदगार को
किन्तु मेरे निर्धन शब्द
श्रृंगारित नहीं कर पाते
मन के अगाध भावों को
यदा कदा....
दरिद्रता झलक ही जाती है
हे शब्द शिल्पी !
क्या ही अच्छा होता
शब्दों के साथ साथ
भावों के भाव भी
तुम समझ पाते !
~s-roz ~
ReplyDeleteसुन्दर रचना, सुन्दर भाव.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .
हार्दिक आभार श्री एस एन शुक्ला जी
Deleteहर वक़्त ख़याल उसका, ऐ दिल क्या तू मेरा कुछ नहीं लगता...!!
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