अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, May 27, 2012

"सूरज दद्दा '

सूरज दद्दा तनिक मान जाओ
इत्ता काहें तपाय रहे हो
गुस्से में सर खपाय रहे हो
बदरा भईया कहाँ छिपे बैठे हो
तनिक छींटा ही मार देओ
जो इत्ता गर्माय रहे हैं
तनिक नरमाए जाएँ
दद्दा ! बदरा से तोहार कभी ना पटी है
पर एसे तोहार महत्ता थोड़े ना घटी है
अब तो दोनों मिलके सदी-बदी कर लेओ
अउर हमहन के तनिक जिए देओ
हम जानित  है ....
पाहिले पेड़ की डार तुमका लुभाय रहती थी
मुख पर तुम्हरे बेना झलती थी
एहिलिये ,हम मान लिहे अपनी गलती
अब ना कबहूँ काटेंगे कवनो पेड़
माना की हुई गवा है कछु देर
कसम लै लेओ अबकी बरसात हम खूब पेड़ रोपेंगे
जे काम हम खुद करेंगे अउरो पे ना थोपेंगे
पर दद्दा!! अबही तनिक मान जाओ पलीज़ !`
~s-roz~
 
 

2 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  2. ऐसन मनुहार करत रहो तो पक्काई मान जैहें.....
    :-)

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