गर मेरा वजूद,
वो पत्थर है !
जो आधी ऊपर पड़ी,
आधी जमीन में गड़ी हो!
जिससे हर रहगुज़र ठोकर खाए
और ठोकर मार जाय !
तो ऐसे में "मैं "......
या तो गड़ ही जाउंगी
या उखड़ ही जाउंगी
पर इतना तय है ...
.ना ठोकर खाऊँगी
और ना ठोकर लगाउंगी !!
~s-roz ~
वो पत्थर है !
जो आधी ऊपर पड़ी,
आधी जमीन में गड़ी हो!
जिससे हर रहगुज़र ठोकर खाए
और ठोकर मार जाय !
तो ऐसे में "मैं "......
या तो गड़ ही जाउंगी
या उखड़ ही जाउंगी
पर इतना तय है ...
.ना ठोकर खाऊँगी
और ना ठोकर लगाउंगी !!
~s-roz ~
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
आभार आपका यशवंत जी
Deleteबहुत बढ़िया सकारात्मकता से भरी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteठोकर खाकर ही इंसान कठोर बनता है और फिर हर मुशीबत का सामना करना सीखता जाता है ..
आभार आपका कविता जी
Deleteसुंदर रचना और सुंदर शब्द चयन ।
ReplyDeleteआभार आपका संजय जी
Deletebehtreen bhaavo ki abhivaykti...
ReplyDeleteआभार आपका सुषमा जी
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