अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, May 8, 2012

"लफ्ज़ और नाखून "

आज! अपने बढ़े हुए नाखूनों को देख
यक बा यक,जेहन में ,
यह ख्याल उभरा के......
'लफ्ज़' भी नाखून ही होते हैं
बेहतर है इन्हें तराश कर रखना
वरना,ये औरों को तो चुभते ही हैं
अलबत्ते, खाने के साथ
खुद की गन्दगी ...........
जबां के भीतर ही जाती है !
~s-roz ~
 

3 comments:

  1. कितनी गहरी बात कह दी।

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  2. लफ्ज तो नाखून से भी गहरी चोट करते हैं .... बहुत गहन अभिव्यक्ति

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  3. यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....

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