काश 'तुम' अपने अहम् के अधीन न होते
मेरे 'शब्द' तुम्हारे लिए महत्वहीन न होते
अब तो हमने आँसुओं का खारा सागर पी लिया है
बीता, तपता रेगिस्तान सा 'समय' जी लिया है
अब आए हुए तुम्हारे 'शब्द' मेरे लिए भावहीन है
शायद अब 'हम' भी अपने अहम् के अधीन हैं
~~~S-ROZ~~~