अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, March 11, 2011

"घीसू" कि चाँदी

"देसी ठेके पर
आज "घीसू" कि चाँदी है .....
कुछ  जानी दोस्त भी जुटे  हैं
जो कभी तकते ना थे
हों भी क्यों ना ...
आज  जो वो "बुधिया" का
आखरी जेवर....  
मंगल सूत्र भी बेच आया है ..
~~~S-ROZ~~~..
 
 

5 comments:

  1. aapka bahut bahut shukriya ...Babu lal ji ...

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  2. आपकी इस रचना ने ....प्रेमचंद जी की महान कहानी 'कफ़न' की याद दिला दी.....सुन्दर|

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  3. घीसू की चांदी .... आज भी बहुत से गरीब घरो की सच है यह ... सुन्दर कृति .. बधाई

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  4. मित्रों!! आप सभी की अनमोल टिप्पणियों से मन्त्र मुग्ध हूँ....आप सभी का ह्रदय से आभार !!!!

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