अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, March 27, 2011

रूठने के भी अपने "अदब' हुआ करते हैं

 इक खामोश 'चाँद' सा दबे पावं
बेसदा,बेआवाज उसका आना
और मेरी जिंदगी में बन के ,
खुशियों के 'बादल' छा जाना
और फिर रूठ के बिन बरसे चले जाना
मेरे लिए हर नफस जीना,हर नफस मरना है
ए हवा ! जरा जाके उनसे कहना
रूठने के भी अपने "अदब' हुआ करते हैं
~~~S-ROZ~~~

5 comments:

  1. सरोज जी,

    सुभानाल्लाह......बहुत ही खुबसूरत पोस्ट है.....एक रूमानियत सी छोडती है ज़ेहन पर ......रूठने के भी अदब.....बहुत खूब....

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  2. संजय जी@/इमरान जी@हौसलाफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया!!!

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  3. bahut sunder rachna h ,i like very much, jai shri krishna

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