इक खामोश 'चाँद' सा दबे पावं
बेसदा,बेआवाज उसका आना
और मेरी जिंदगी में बन के ,
खुशियों के 'बादल' छा जाना
और फिर रूठ के बिन बरसे चले जाना
मेरे लिए हर नफस जीना,हर नफस मरना है
ए हवा ! जरा जाके उनसे कहना
रूठने के भी अपने "अदब' हुआ करते हैं
~~~S-ROZ~~~
... बेहद प्रभावशाली
ReplyDeleteसरोज जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह......बहुत ही खुबसूरत पोस्ट है.....एक रूमानियत सी छोडती है ज़ेहन पर ......रूठने के भी अदब.....बहुत खूब....
संजय जी@/इमरान जी@हौसलाफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया!!!
ReplyDeletebahut sunder rachna h ,i like very much, jai shri krishna
ReplyDeleteवाह वाह !!!!!
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