अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, February 4, 2011

"बसंत बहार "

"मौसमों  की मंडी से, दो ही रुत, मुझे मोल मिले 
गिरते पत्तों वाला पतझड़,और पियराती बसंत  बहार
पतझड़, के  सूखे पत्ते मेरे जैसे,  वो मै रख लूंगी
बासंती पवन सुहाना, तेरे जैसा, वो तुम रख लेना"
~~~S-ROZ~~~ 
 
 
 
 
 
 
 

5 comments:

  1. सरोज जी,

    वसंत का खुबसूरत अंदाज़ में स्वागत किया है आपने.....शुभकामनायें|

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  2. सादगी और बड़प्पन - वाह - बहुत सुंदर

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  3. सीधे सरल शब्द और ढेर सारा अपनत्व ... सुन्दर रचना .... बधाई

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  4. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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  5. बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)

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