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"स्याह रातों में पोछे है इसने मेरे आंसू
सिरहाने लगकर खड़ी थी जो दीवार ,
संगे मरमर के ताज से भी हसीं है ये
अपने घर की वो पुरानी खुरदरी दीवार ,
मगर,दिल में न खड़ी करना यारों इसे
...फिर आंगन में भी ये खड़ी करेगी दिवार",
~~~S-ROZ ~~~
सिरहाने लगकर खड़ी थी जो दीवार ,
संगे मरमर के ताज से भी हसीं है ये
अपने घर की वो पुरानी खुरदरी दीवार ,
मगर,दिल में न खड़ी करना यारों इसे
...फिर आंगन में भी ये खड़ी करेगी दिवार",
~~~S-ROZ ~~~
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अजब हाल है दोस्तों!!!,
नेकी का तो अब वो जमाना ही न रहा
हम चुन रहे थे उनके, ढहे घर के टुकडे सहेजकर
वो देखते हमें भाग चले, हाथ मेरे 'पत्थर' देखकर" `
~~~S-ROZ ~~~;-)
नेकी का तो अब वो जमाना ही न रहा
हम चुन रहे थे उनके, ढहे घर के टुकडे सहेजकर
वो देखते हमें भाग चले, हाथ मेरे 'पत्थर' देखकर" `
~~~S-ROZ ~~~;-)
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"बरकत क्या कम हुई मेरे घर की
गमले में क़ैद बोनसाई मुस्कुरा उठी"
~~~S-ROZ~~~
गमले में क़ैद बोनसाई मुस्कुरा उठी"
~~~S-ROZ~~~
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"हम दोनों रहे अपने 'अना' के कैदी
खामिया किसी में भी ना 'कम' थी
बिछड़ते वक़्त दिल बहुत भारी था मेरा
और तुम्हारी आँख भी तो कुछ 'नम' थी"
~~~S-ROZ ~~~
सरोज जी,
ReplyDeleteउम्दा शेर.....बहुत खूब.....दीवार वाला सबसे अच्छा लगा|
bhahut shukriya Emraan JI,
ReplyDeletenot Emran its Imran :-)
ReplyDeleteवाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
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