अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, December 20, 2011

"कुछ मुख्तलिफ एहसास"

 आज ये दिल गज़ब जिद पे अड़ा है
जो खोई हर चीज है उसे ढूंढे पड़ा है ..:)
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गम का .....
तपता रेगिस्तान तुमने जिया
आँसुओं का.....
खारा समंदर हमने पिया
इस तरहा ...
हम तुम में जिंदगी ज़ज्ब होती रही
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बालिश्तों से नापते रात कट ही जाएगी
दिल को यकीं है हसीं सुबह जरुर आएगी
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उसे ये जिद है,के मैं पुकारूँ उसे
मुझे ये तकाजा,के वो बुला ले मुझे
इसी तसलसुल में रात बेहीस हुई जाती है
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एक समन्दर आग का
और मोम की नाव
पार लगे किस हाल बन्धु
नाव लगे किस ठावं
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पल भर का
आना भी........
कैसा आना प्रीय .!
हर आना ............
अपने में लिए होता है ......
लौट जाना .............!
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इक जंग वाबस्ता है 'खुद' का 'खुद' ही से
'औरों' के हमलों का फिर क्या जवाब दें
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तुम्हारे दिखाए सब्जबाग की अब आदत रही नहीं
अब सर्द रातों में सूखे पत्तों का सुलगना ही भाता है
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ये गुब्बारे भी .........
.......क्या खूब होते हैं
जरा सी हवा में .......
...................अर्श को
आशियाँ समझ लेते हैं
... ...........गोकि उन्हें भी
फ़ना फर्श पर ही होना है
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तेरी जुस्तजू में ....!
मेरी जिंदगी इक मुसलसल सफ़र है
....और मंजिल है तू .........!
जो मंजिल तक पहुचूँ तो मंजिल ही चल दे ....."
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शब्दों के कोलाहल से
मौन के कोलाहल तक कि यात्रा
परम आतम कि,प्रथम अनुभति है
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ना हो जाएँ जहाँ में सियार हावी
शेरों को अब मांद से निकलना होगा
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हमसे है अव्यवस्था ...
अव्यवस्था से हैं "हम" ..
फिर भी गुरेज ,के,
हमारे देश में सबसे
"व्यवस्थित अव्यवस्था" है "
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तू कहे तो इस वतन के सदके अपनी जाँ भी दे दूँ
पर ये खूँ बेजां नालियों में बहे,ये गवारा नहीं मुझे
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हैं वतन परस्त हम भी,पर दिल कुछ उलझ सा जाता है
वतन के रहनुमाओं ने,बाँट जो रखे हैं दायरे अपने अपने
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माना के जो बीता वो रोज़ बीतेगा तुझपर
पर जो टूटा था वो रोज़ टूटता है मुझपर
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रात कि ख़ामोशी लोरी सुनाने लगी
ए ख्वाब ठहर मुझे नींद आने लगी
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उफ़!! नामुराद आज ये "दिल" क्यूँ इतना खाली खाली सा है
ख़ुशी की उम्मीद नहीं,"गम" को भी पाला मार गया लगता है
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हर नफस घोलती रही अपना वजूद जिनके वजूद में
वो ही आज पूछते हैं "रोज़" बता तेरा वजूद क्या है
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~~~S-ROZ~~~~
 

11 comments:

  1. बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास

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  2. अहसासों की कहानी हैं.... भावमय करते शब्‍दों का संगम....

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  3. बहुत खूबसूरत रचना...
    बधाई.

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  4. बेहतरीन एहसास!

    सादर
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    जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

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  5. बहुत खूबसूरत अहसास सभी रंगो से सजे।

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  6. बड़े ही उम्दा खयालात पेश किये हैं आपने आदरणीय सरोज जी....
    सादर बधाई.

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  7. बहुत ही खूबसूरत एहसासों से सजी प्रभावशाली रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  8. रात की खामोशी लोरी सुनने लगी ...

    वाह ...बहुत ही बढि़या लिखा है आपने ।

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  9. संगीता जी /सुषमा जी/विद्द्य जी/यशवंत जी/वंदना जी/संजय जी /पल्लवी जी/सदा जी ..आप सभी की सार्थक टिप्पणियों ह्रदय से आभार .....!!

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  10. वाह..हर एक शेर बेहतरीन है...सोचा था कोई एक यहाँ quote करूँगा, लेकिन कौन सा तय नहीं कर पाया(और ऊपर से आपके ब्लॉग में कॉपी-पेस्ट का ओपसन भी नहीं है :P)
    शानदार है हर शेर!

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  11. ik ik katra sagar sa hai...likha aapne geele ham ho gaye...bahut achche

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