"हमने हर इंसान के गुनाहों पर
जलालतों के पत्थर बड़े फेकें हैं
पर क्या कभी एक प्यार का पत्थर ,
दिल के उस दरवाजे पर फेंका है,
जहाँ एक 'खुदा' सो रहा है ?
'वलियों' से सुनते आए हैं के
हर इंसान में 'खुदा' होता है ,
फिर हम क्यूँ उसके हैवानियत को हवा देते है?
उसके भीतर के खुदा को क्यूँ नहीं जगा देते है?
कही ना कही हम खुद भी गुनहगार है उसके "
~~~S-ROZ~~~
सरोज जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह....बहुत खूब और बहुत सच कहा है आपने|
SHUKRIYA IMRAAN JI !!
ReplyDeleteकहते तो ऐसे ही हैं की "हर इंसान में खुदा होता है" इसलिए आपका प्रश्न जायज है - नव वर्ष २०११ की मंगल कामना
ReplyDeleteआपको भी नववर्ष की ढेरों शुभकामनायें व आभार
ReplyDeleteला-जवाब" जबर्दस्त!!
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