अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, January 25, 2011

"हे भारत के पान्चजन्य जागो "


"सुसुप्त है गदा भीम की,अब भी मोहधीन है  पार्थ  !
"हे भारत के पान्चजन्य!अब तो समझो यथार्थ !
जागो ! संस्कृति के स्वाभिमान जगाने हेतु जागो  !
जागो !भारत भूमि की गौरव  महिमा बढ़ाने हेतु जागो!
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"हे मेरे गणतंत्र!! आज तू  देश की अस्मिता जगा दे !
शत्रु मर्दनी गरिमा लेकर,दरिद्रता,आतंक,अनाचार मिटा  दे !
'आज लगाकर निज ललाट पर तेरी रज का पावन चन्दन !
गणतंत्र दिवस के समुप्लक्ष्य में हम सब करते तेरा अभिनन्दन ! 
~~~S-ROZ~~~
 
 
 
 
 

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