अधूरे ख्वाब
"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "
डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Sunday, January 9, 2011
"हे आदि देव
"हे आदि देव!
साँझ ढलते,..तुम!!
"पश्चमी नभ के जलधि में
डूब
जाते हो
....पर !!
चन्द्रमा की चित्रलिपि में
फिर भी जगमगाते हो ... "
कभी सदृश्य तुम कभी अदृश्य तुम
दोनों ही बिन्दुओं में हो प्रकाशक "
~~~S-ROZ~~~
1 comment:
संजय भास्कर
February 10, 2011 at 4:51 AM
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
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