अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, May 19, 2014

" बागबानी "

तुमसे मिले वो कीमती पल 
लौट के ना आयेंगे कल 
ये सोच कर
मैंने उन्हें बो दिया
ख्वाब की क्यारीयों में
उन्हें संजो दिया
और तभी से ........
उन नर्म लम्स की हरारत 
इन लम्हों को सींचती है 
वो हंसी तब्बसुम 
गुंचे बन खिल उठते हैं 
वो एहसास 
उन बोये हुए 
लम्हों की उपज
बढ़ा देती है 
यक़ीन जानो...
तसव्वुर के बागान में 
बागबानी के अपने मजे हैं 

जाना ............!
हो जो कभी फुर्सत 
तो सैर को आ जाना !!
 
~s-roz~

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