प्रतीक्षा की शिला पर
खड़ी हो
बारम्बार
पुकारती रही तुम्हे
वेदना की घाटियों से
विरह स्वर का
लौटना
नियति है
किन्तु, तुम
उन स्वरों को
शब्दों में पिरो कर
काव्य से .....
महाकाव्य रचते रहे
मैं मूक होती गयी
और तुम्हारी कवितायें
वाचाल
मैं अब भी अबोध सी
खड़ी हूँ
उसी शिला पर
कि कभी तो
प्रतिध्वनित स्वर
मेरे मौन को
मुखरित करने
पुन: आवेंगे !!!
~s-roz~
खड़ी हो
बारम्बार
पुकारती रही तुम्हे
वेदना की घाटियों से
विरह स्वर का
लौटना
नियति है
किन्तु, तुम
उन स्वरों को
शब्दों में पिरो कर
काव्य से .....
महाकाव्य रचते रहे
मैं मूक होती गयी
और तुम्हारी कवितायें
वाचाल
मैं अब भी अबोध सी
खड़ी हूँ
उसी शिला पर
कि कभी तो
प्रतिध्वनित स्वर
मेरे मौन को
मुखरित करने
पुन: आवेंगे !!!
~s-roz~
सुन्दर बोध रचना...
ReplyDeleteसादर शुक्रिया आपका वाण भट्ट जी
ReplyDeleteBahot khoob.....sir
DeleteJis tarha geeta me shreekrishna arjun ko margdarsan karte the theek aap jindagi me kuch karne wale students KA marg darsan karte hai aapko koti koti pranam
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