अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Saturday, May 10, 2014

"गधे "

गधे की पीठ पर 
लदी होती है 
रोड़ी , सीमेंट और ईंटें 
तल्ख़ मौसमों की मार सहते हुए 
घर की बुनियाद ढोए चलते रहते हैं 
मुफ़ीद ज़मीं तलक़
घर, तोरण, महूरत 
इससे उसका कोई वास्ता नहीं होता 
.
.

किसी अज़ीम ने कहा था 
"सिंहासन खाली करो कि जनता आती है "
हमने तो अब तलक़ उन्हें सिंहासन ढ़ोते ही देखा है !!

~s-roz~

3 comments:

  1. सटीक और सारगर्भित।

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  2. जनता को गधा बनाये रखने में सिंघासन की साजिश है...

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