अधूरे ख्वाब
"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "
डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Tuesday, January 21, 2014
"रसद ज़िन्दगी की"
चूल्हा .....
रोज़ जलता है
बुझ जाता है
भूख बढ़ती है
घटती है ....
फिर बढ़ जाती है
रसद ज़िन्दगी की मगर
चुकती जाती है !
~s-roz~
1 comment:
saroj
January 23, 2014 at 8:37 AM
सादर आभार वाणभट्ट जी
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सादर आभार वाणभट्ट जी
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