"आप" का अनुबंध कितने दिन चले
देखते हैं, ये प्रबंध कितने दिन चले
ना दिखेगा कासा किसी के हाथ में
देखते हैं,ये सौगंध कितने दिन चले
अबके सावन फिर, भर उठेगी नदी
देखतें हैं,ये तटबंध कितने दिन चले
जो डोर थी उसमे पड़ी गांठे ही गांठे
देखते हैं,ये सम्बन्ध कितने दिन चले
इसे तोड़ उसे जोड़ की है ये राजनीति
देखते हैं, ये गठबन्ध कितने दिन चले
~s-roz~
देखते हैं, ये प्रबंध कितने दिन चले
ना दिखेगा कासा किसी के हाथ में
देखते हैं,ये सौगंध कितने दिन चले
अबके सावन फिर, भर उठेगी नदी
देखतें हैं,ये तटबंध कितने दिन चले
जो डोर थी उसमे पड़ी गांठे ही गांठे
देखते हैं,ये सम्बन्ध कितने दिन चले
इसे तोड़ उसे जोड़ की है ये राजनीति
देखते हैं, ये गठबन्ध कितने दिन चले
~s-roz~
सच है ! देखते है कितने दिन चले ...
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका उपासना जी
Deleteलाजवाब शेर .. पर ये चलना चाहिए देश की भलाई के लिए ...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया दिगंबर जी .बिलकुल सही कहा आपने परिवर्तन हर हाल अच्छा होता है .... इनके चलने का हमें भी इंतज़ार है ! सादर !
ReplyDelete" परिवर्तन ही यदि उन्नति है तो हम बढते जाते हैं ।
ReplyDeleteकिन्तु मुझे तो सीधे सच्चे पूर्व-भाव ही भाते हैं ।"
"पञ्चवटी" - मैथिलीशरण गुप्त
सादर आभार शकुंतला जी आपकी अनुपम टिपण्णी के लिए
Deleteलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
सादर आभार आपका प्रसन्न बदन जी ,
ReplyDelete