अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, December 9, 2013

" ग़ज़ल" (आज के सियासी हालात पर)

"आप" का अनुबंध कितने दिन चले 
देखते हैं, ये प्रबंध कितने दिन चले 

ना दिखेगा कासा किसी के हाथ में 
देखते हैं,ये सौगंध कितने दिन चले 

अबके सावन फिर, भर उठेगी नदी 
देखतें हैं,ये तटबंध कितने दिन चले 


जो डोर थी उसमे पड़ी गांठे ही गांठे 
देखते हैं,ये सम्बन्ध कितने दिन चले 

इसे तोड़ उसे जोड़ की है ये राजनीति 
देखते हैं, ये गठबन्ध कितने दिन चले 

~s-roz~

8 comments:

  1. सच है ! देखते है कितने दिन चले ...

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    1. जी सादर आभार आपका उपासना जी

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  2. लाजवाब शेर .. पर ये चलना चाहिए देश की भलाई के लिए ...

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  3. बहुत शुक्रिया दिगंबर जी .बिलकुल सही कहा आपने परिवर्तन हर हाल अच्छा होता है .... इनके चलने का हमें भी इंतज़ार है ! सादर !

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  4. " परिवर्तन ही यदि उन्नति है तो हम बढते जाते हैं ।
    किन्तु मुझे तो सीधे सच्चे पूर्व-भाव ही भाते हैं ।"
    "पञ्चवटी" - मैथिलीशरण गुप्त

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    1. सादर आभार शकुंतला जी आपकी अनुपम टिपण्णी के लिए

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  5. सादर आभार आपका प्रसन्न बदन जी ,

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