जितना कम सामां
सफ़र उतना आसां
मुझे अब याद आई
बुजुर्गों की वो ज़बां
निकले थे सफ़र में
लेकर ढेरों अरमां
दोनों हथेलियों में
भरकर दौलते जहां
रस्ते में मज़लूम थे
बच्चे बूढ़े औ जवां
खोली न मुट्ठी कभी
सफ़र के दरमियां
गैरत से दामनकशां
हुए ना हम पशेमां
था आगे सफ़र में
बियाबां ही बियाबां
दूर तलक़ जंगल में
ना मकीं थे न मकां
आगे देखा ज़बल जब
तब हुए हम परीशां
बिना सहारे चढ़ना
क़तई न था आसां
चलना ज़िन्दगी थी
रुकना ख़तरा-ए-जां
खोल दी हथेलियां
दौलत हुआ जियां
देने को सहारा मुझे
फैली थी शाखें वहां
खुदा भी ले रहा था
खुदगरज़ी की इम्तहां
ख़ाली हाथ आये थे
ख़ाली रुख़सते-जहां
~s-roz~
मजलूम =मजबूर /पीड़ित
दामनकशां = दामन बचाते हुए
पशेमां=लज्जित
ज़बल=पर्वत
मकीं =मकान में रहने वाले
जियां=व्यर्थ
रुख़सते-जहां=जहां से विदा होना
सफ़र उतना आसां
मुझे अब याद आई
बुजुर्गों की वो ज़बां
निकले थे सफ़र में
लेकर ढेरों अरमां
दोनों हथेलियों में
भरकर दौलते जहां
रस्ते में मज़लूम थे
बच्चे बूढ़े औ जवां
खोली न मुट्ठी कभी
सफ़र के दरमियां
गैरत से दामनकशां
हुए ना हम पशेमां
था आगे सफ़र में
बियाबां ही बियाबां
दूर तलक़ जंगल में
ना मकीं थे न मकां
आगे देखा ज़बल जब
तब हुए हम परीशां
बिना सहारे चढ़ना
क़तई न था आसां
चलना ज़िन्दगी थी
रुकना ख़तरा-ए-जां
खोल दी हथेलियां
दौलत हुआ जियां
देने को सहारा मुझे
फैली थी शाखें वहां
खुदा भी ले रहा था
खुदगरज़ी की इम्तहां
ख़ाली हाथ आये थे
ख़ाली रुख़सते-जहां
~s-roz~
मजलूम =मजबूर /पीड़ित
दामनकशां = दामन बचाते हुए
पशेमां=लज्जित
ज़बल=पर्वत
मकीं =मकान में रहने वाले
जियां=व्यर्थ
रुख़सते-जहां=जहां से विदा होना
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