अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, December 3, 2013

"ग़ज़ल"

सुर, सरगम आवाज़-ओ-साज़ मांगती है 
जिंदगी राग-ए-दर्द का रियाज़ मांगती है

कब, कहाँ, कैसे, कितना, क्या-क्या किया 
उम्र की बही हर साँस का ब्याज मांगती है

वसीयत के साथ उम्र भी बंट गयी उसकी 
वो मगर,बच्चों की उम्र-ए-दराज़ मांगती है

पर क़तरे और फ़र्श पर जमे है पांव मगर 

हिम्मत अर्श के रुख को परवाज़ मांगती है

किस्मत में आसाइश-ए-मंजिल हो के न हो 
'रोज़' हर इक अंजाम का आगाज़ मांगती है

~s-roz~
आसाइशे-अंजाम= happy ending

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